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नए साल का आगमन: ऐतिहासिक और धार्मिक दृष्टिकोण
नया साल आ चुका है, और इस पर न केवल उत्साह, बल्कि विचार-विमर्श भी हो रहा है। एक जनवरी को नए साल के आगमन को लेकर विभिन्न धार्मिक मान्यताएँ हैं। हिंदू धर्म में इसे एक नया वर्ष नहीं माना जाता, जबकि कई अन्य धर्मों में भी इसे लेकर मतभेद हैं। सवाल यह उठता है कि क्या एक जनवरी मात्र एक कैलेंडर की तारीख है, या इसके पीछे कोई धार्मिक महत्त्व है। इस विषय पर विचार करते हुए, हम यह जानेंगे कि कैसे यह तय हुआ कि एक जनवरी सभी के लिए वर्ष की पहली तारीख बन गई।
एक वर्ष में 445 दिन होते थे
हैरान करने वाली बात यह है कि प्राचीन काल में एक वर्ष 445 दिनों
ईसाई कैलेंडर का ईसाई धर्म से कोई संबंध नहीं
रोमन कैलेंडर का प्रभाव पूरी दुनिया पर रहा, लेकिन इसके ईसाई धर्म से कोई सीधा संबंध नहीं है। असल में, यह उत्तर यूरोप के आदिवासियों का कैलेंडर था, जो अपने वर्ष की शुरुआत बसंत के महीने से करते थे। 304 दिनों का यह वर्ष 25 दिसंबर को समाप्त होता था, जिसे बड़ा दिन माना जाता था। बाद में जूलियस सीजर ने इसे सुधार कर 1 जनवरी को वर्ष की शुरुआत का दिन तय किया।
…और इस तरह 1 जनवरी हो गया साल का पहला दिन
एक दिलचस्प तथ्य यह है कि 45 ईसा पूर्व में रोमन सम्राट ने वर्ष की शुरुआत 25 दिसंबर को तय करने की योजना बनाई, लेकिन लोगों ने इसका विरोध किया। वे 1 जनवरी को शुभ मानते थे, इसलिए अंततः जूलियस सीज़र ने 1 जनवरी को वर्ष का पहला दिन मान लिया। इससे 2077 साल पहले नया साल निश्चित हुआ।
सप्ताह में 7 दिन क्यों?
यह जानना भी दिलचस्प है कि सप्ताह में सात ही दिन का चलन कैसे हुआ। प्राचीन काल में विभिन्न संस्कृतियों में सप्ताह की संख्या भिन्न थी। उदाहरण के लिए, इजिप्शियन लोग 10 दिनों का सप्ताह मानते थे, जबकि बेबोलोनियन अपने धार्मिक कार्यों के लिए विभिन्न दिनों को चुना करते थे।
बेबोलोनियन एस्ट्रोलॉजर्स के मुताबिक सात दिनों के नाम थे
बेबोलोनियन संस्कृतियों में सप्ताह के दिनों के लिए सात अलग-अलग नाम थे। ये नाम निम्नलिखित थे:
- निनाब (शनि) – महामारी और दुर्दिन के देवता
- मारदुक (गुरु) – देवताओं के राजा
- नेरगल (मंगल) – युद्ध के देवता
- शमशाह (रवि) – न्याय और विधि व्यवस्था के देवता
- ईश्तार (शुक्र) – फर्टीलिटी के देवता
- नबु (बुध) – लेखन के देवता
- सिन (चंद्रमा) – कृषि के देवता
इस तरह संडे का जन्म हुआ…
विभिन्न संस्कृतियों में सप्ताह के दिनों के संचालन में भिन्नता थी। 323 ईस्वी में रोमन सम्राट कॉन्स्टनटाइन ने यहूदियों के शैबथ को संडे में बदल दिया। इसी अवधि के दौरान भारत में भी सात दिनों का सप्ताह प्रचलित हुआ।
5 अक्टूबर 1582 को कैलेंडर का हैप्पी बर्थडे
सालों बाद वैज्ञानिकों ने देखा कि जुलियन कैलेंडर में कुछ त्रुटियाँ थीं। 1582 में पोप ग्रेगोरी 8वें ने नए कैलेंडर को लागू किया, जिसमें लीप ईयर के नियम को भी बदला गया। इसके बाद ग्रेगोरियन कैलेंडर को विभिन्न देशों द्वारा अपनाया गया।
वर्ल्ड कैलेंडर की मांग
1887 में पहली बार दुनियाभर में एक समान कैलेंडर की मांग की गई थी। इस मांग के पीछे सबसे अधिक चर्चा कैलेंडर के दिनों के वार्षिक और मासिक विभाजन पर थी। इसमें 13 महीनों का कैलेंडर बनाने की चर्चा भी हुई, लेकिन यह सफल नहीं हो सका।
कैलेंडर और आर्यभट्ट
इतिहास में भारत ने भी कैलेंडर के सुधार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। वैज्ञानिक मेघानंद साहा ने संयुक्त राष्ट्र संघ में एक समान कैलेंडर का सुझाव पेश किया था। आर्यभट्ट ने भी कैलेंडर की गणना में योगदान दिया।
कलियुग का निर्धारण कैसे हुआ?
आर्यभट्ट ने बताया कि एक वर्ष में 365.25875 दिन होते हैं और उन्होंने कलियुग का समय निर्धारण भी किया।
कैलेंडर में भारत का योगदान
ब्रह्मगुप्त के अनुसार भी एक वर्ष में 365.25844 दिन होते हैं। प्राचीन वेदों में भी काल गणना की जानकारी मिलती है, जिससे आगे चलकर भारतीय कैलेंडर का विकास हुआ।
कैसा था अकबर का कैलेंडर?
अकबर ने 1584 में चंद्रमा आधारित हिजरी कैलेंडर को बदलने का प्रयास किया, लेकिन यह सफल नहीं हुआ। इसके बाद भी भारत में सूर्य आधारित कैलेंडर का प्रचलन जारी रहा।
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