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रजनीकांत: भारतीय सिनेमा के महानायक का अद्वितीय सफर
रजनीकांत का जन्म 12 दिसंबर 1950 को कर्नाटक में एक मराठी परिवार में हुआ। उनका असली नाम शिवाजी राव गायकवाड था। बचपन से ही आर्थिक तंगी ने उन्हें छोटे-मोटे काम करने के लिए मजबूर किया। उन्होंने कुली का काम किया और बढ़ईगीरी सीखी, उसके बाद बैंगलोर ट्रांसपोर्ट सर्विस में बस कंडक्टर की नौकरी की, जहां उनकी मासिक तनख्वाह 750 रुपये थी। उनका यात्रियों के साथ बातचीत करने का तरीका उन्हें लोगों के बीच खास बना देता था। किन्तु उनकी किस्मत में और भी बड़ा अवसर लिखा था।
रजनीकांत ने अपने दोस्तों के प्रोत्साहन पर मद्रास फिल्म इंस्टीट्यूट में दाखिला लिया। वहाँ उनकी प्रतिभा को फिल्म निर्देशक के बालचंदर ने पहचाना और उन्हें फिल्म “अपूर्वा रागंगल” में पहला मौका दिया। उनके छोटे किरदारों में भी उनकी स्क्रीन प्रेजेंस इतनी प्रभावशाली थी कि दर्शक उन्हें नज़रअंदाज़ नहीं कर सके। जल्द ही, उनके अनूठे अंदाज़, संवाद अदायगी और शैली ने उन्हें एक स्थापित अभिनेता बना दिया।
इन फिल्मों ने रजनीकांत को बनाया स्टार
1980 और 1990 के दशक में रजनीकांत का करियर एक नई ऊँचाई पर पहुंचा। फिल्में जैसे “बाशा”, “मुथु” और “पदयप्पा” ने उन्हें फिल्म इंडस्ट्री में एक अद्वितीय स्थान दिलाया। उनका सिगरेट उछालना और सनग्लासेस घुमाना उनकी पहचान बन गया। दर्शकों के दिलों में उनकी छवि एक ऐसे नायक के रूप में बनी, जो आम आदमी की भावनाओं को पर्दे पर जीवंत करता है। रजनीकांत केवल मनोरंजन नहीं देते, बल्कि उन्हें प्रेरणा का स्रोत भी माना जाता है।
बिना गॉडफादर के बने सफलता की मिसाल
रजनीकांत की सफलता का सबसे बड़ा पहलू यह है कि उन्होंने अपने बलबूते पर इंडस्ट्री में कदम रखा, बिना किसी फिल्मी परिवार का सहारा लिए। आज जब नेपोटिज्म की बातें हो रही हैं, रजनीकांत एक उदाहरण बन गए हैं, जिन्होंने मेहनत और लगन से अपनी पहचान बनाई। उनका यह प्रेरणादायक सफर अब CBSE की पाठ्य पुस्तकों में भी शामिल किया गया है, जिसमें बच्चों को काम की गरिमा का महत्व सिखाया जाता है।
उम्र केवल एक संख्या है, और रजनीकांत इसका जीवित उदाहरण हैं। 2025 में उन्होंने फिल्म “कुली” में काम किया, जो बॉक्स ऑफिस पर सफल रही। लेकिन दर्शकों ने इस फिल्म में भावनात्मक गहराई की कमी महसूस की, जो उन्हें उनके पिछले कामों से अपेक्षित थी।
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