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जमशेदपुर में 22वें संताली ‘परसी महा’ का आयोजन
जमशेदपुर: करनडीह में आयोजित 22वें संताली ‘परसी महा’ एवं ओलचिकी लिपि के शताब्दी समारोह में देश के प्रमुख नेताओं की उपस्थिति रही। इस कार्यक्रम में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु, संतोष कुमार गंगवार, और हेमन्त सोरेन शामिल हुए।
राष्ट्रपति का प्रेरक संबोधन
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु ने ओलचिकी लिपि के शताब्दी समारोह को ऐतिहासिक मानते हुए कहा कि यह केवल लिपि नहीं, बल्कि संताल समुदाय की पहचान और सांस्कृतिक गर्व का प्रतीक है। उन्होंने बताया कि ओलचिकी का आविष्कार 1925 में ओडिशा के दांडबोस गांव में पंडित रघुनाथ मुर्मू द्वारा किया गया, जो संताली भाषा के विकास में महत्वपूर्ण साबित हुआ।
मातृभाषा और पर्यावरण पर जोर
अपने भाषण में, राष्ट्रपति ने मातृभाषा के महत्व पर जोर देते हुए कहा कि बच्चों के विकास के लिए उनकी मातृभाषा में शिक्षा आवश्यक है। उन्होंने संताली साहित्य और लेखकों के योगदान की सराहना की और पर्यावरण संरक्षण के संबंध में जनजातीय समाज और प्रकृति के बीच के गहरे संबंध की बात की।
सांस्कृतिक गौरव का उत्सव
समारोह में संताली साहित्य, संगीत और परंपराओं की विशेष झलक देखने को मिली। ओलचिकी लिपि की 100 वर्षों की यात्रा को संताल समाज की एकता का प्रतीक मानते हुए वक्ताओं ने इसकी गरिमा पर प्रकाश डाला।
मातृभाषा को बचाने पर जोर
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु ने कहा कि हिंदी, अंग्रेजी, ओड़िआ, और बांग्ला जैसी भाषाओं में शिक्षा प्राप्त करना महत्वपूर्ण है, लेकिन बच्चों के लिए संताली को ओलचिकी लिपि में सीखना भी आवश्यक है। उन्होंने एक ओड़िआ कविता की पंक्तियों का उल्लेख किया जिसमें मातृभाषा की महत्ता को दर्शाया गया है।
संताली को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल करने की बात
राष्ट्रपति ने संताली भाषा के प्रचार में अपने योगदान का उल्लेख किया। उन्होंने बताया कि जब वह ओड़िशा सरकार में मंत्री थीं, तब संताली को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल कराने के प्रयास किए गए थे।
पंडित रघुनाथ मुर्मू की याद
द्रौपदी मुर्मू ने मातृभाषा के महत्व को रेखांकित करते हुए पंडित रघुनाथ मुर्मू के कथन का उल्लेख किया, जिसमें मातृभाषा के प्रयोग की आवश्यकता को बताया गया।
संताली में ‘चंदा मामा’ का प्रकाशन
लोकप्रिय बाल पत्रिका “चंदा मामा” को संताली भाषा एवं ओलचिकी लिपि में प्रकाशित किया गया था। राष्ट्रपति ने इस प्रकाशन में अपने योगदान का भी उल्लेख किया। इस बीच, केंद्रीय साहित्य अकादमी ने संताली भाषा में साहित्य सृजन करने वाले लेखकों को पुरस्कार देना शुरू किया है, जो कि इस भाषा के साहित्य के प्रति समर्पित सम्मान है।
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