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भारत में GPS: संभावित बदलाव और चिंताएँ
भारत में मोबाइल फोन पर GPS को स्थायी रूप से सक्रिय रखने की चर्चा जोरों पर है। यदि यह नियम लागू होता है, तो स्मार्टफोनों द्वारा केवल स्थान की जानकारी ही नहीं, बल्कि यात्रा की पूरी जानकारी, गति, रुकने के अंश और यात्राओं के दौरान मुलाकातों का ब्यौरा भी संचित किया जाएगा। यह केवल ट्रैकिंग नहीं बल्कि नागरिकों की संपूर्ण मूवमेंट मैपिंग होगी।
सर्विलांस का नया चेहरा
अब तक, स्थान का पता टावर ट्रायएंगुलेशन द्वारा लगाया जाता था, जिससे मोहल्ले स्तर की जानकारी मिलती थी। लेकिन GPS तकनीक के जरिए आपके कदमों का सटीक नक्शा तैयार किया जा सकता है। यदि इसे SIM बाइंडिंग, आधार लिंकिंग, और FASTag डेटा के साथ जोड़ा गया, तो सरकार के पास हर नागरिक की मूवमेंट हिस्ट्री का एकीकृत नक्शा बन जाएगा।
इस विषय पर चर्चा का कारण
हाल ही में यह चर्चा मुख्यधारा में आई है क्योंकि टेलीकॉम कंपनियाँ ट्रेसिंग इन्फ्रास्ट्रक्चर में निवेश करने से बच रही हैं। उनका मानना है कि यह जिम्मेदारी हैंडसेट पर डाल दी जाए, जिससे फोन खुद बैटरी और GPS का उपयोग करके ट्रैकिंग कार्य कर सके।
किसके लिए यह खतरा, किसके लिए यह अवसर?
सरकार का तर्क है कि इस पहल से आतंकवादियों और अपराधियों को ट्रैक करना सरल होगा। हालांकि, आलोचक मानते हैं कि पत्रकारों, विपक्षी नेताओं, और आम नागरिकों की निजता भी खतरें में पड़ सकती है। हालाँकि भारत में अभी तक कोई ठोस सर्विलांस कानून नहीं है, जो राष्ट्रीय सुरक्षा और राजनीतिक हितों के बीच की सीमा को धुंधला कर रहा है।
आगे का रास्ता
डायनैमिक टेक्नोलॉजी पॉलिसी विशेषज्ञ निखिल पाहवा ने अपने लिंक्डइन पोस्ट में बताया कि हैंडसेट निर्माताओं पर दबाव बढ़ेगा कि वे इस स्थायी GPS को लागू करें। लेकिन यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि क्या वे उपयोगकर्ताओं की प्राइवेसी को लेकर कोई ठोस दृष्टिकोण अपनाते हैं। आने वाले महीनों में यह बहस और अधिक गरमाने की उम्मीद है।
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