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राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू का करनडीह में संबोधन
जमशेदपुर के करनडीह में, दिशोम जाहेरथान प्रांगण में ऑल इंडिया संताली राइटर्स एसोसिएशन और दिशोम जाहेरथान कमेटी द्वारा आयोजित 22वें संताली परसी माहा एवं ओलचिकी शताब्दी समारोह में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने अपने संबोधन की शुरुआत संताली में “नेहोर गीत” गाकर की। उन्होंने संताली समाज और ओलचिकी भाषा के उत्थान में संताली राइटर्स के योगदान की तारीफ की।
संताली राइटर्स के योगदान की सराहना
राष्ट्रपति ने कहा कि आदिवासियों के स्वाभिमान और अस्तित्व की रक्षा में संताली राइटर्स का योगदान अद्वितीय है। वे हर साल ओलचिकी लिपि के विकास हेतु कार्य करते हैं और अपनी दिनचर्या से समय निकालकर इस दिशा में प्रयासरत रहते हैं। उन्होंने रघुनाथ मुर्मू के कार्यों को आगे बढ़ाने की प्रशंसा की।
संविधान का संताली अनुवाद
उन्होंने संविधान के संताली अनुवाद का उल्लेख करते हुए कहा कि अटल बिहारी वाजपेयी के शताब्दी वर्ष के उपलक्ष्य में ओलचिकी में संविधान का प्रकाशन एक महत्वपूर्ण कदम है, जो संताली समाज को सशक्त बनाने की दिशा में अग्रसर है।
नेहोर गीत से संबोधन की शुरुआत
अपने संबोधन में राष्ट्रपति ने कहा कि संताली में जन्म लेने के बावजूद समाज के प्रति योगदान देना अत्यंत महत्वपूर्ण है। उन्होंने सांस्कृतिक धरोहर को संरक्षित करने पर जोर दिया।
ओलचिकी के उत्थान पर जोर
राष्ट्रपति ने ओलचिकी को व्यापक रूप से प्रचलित करने के लिए दीवारों पर संताली लिपि में कलाकृतियां बनाने की आवश्यकता पर बल दिया। साथ ही, उन्होंने सभी से अपने बच्चों को मातृभाषा सिखाने के लिए प्रेरित किया, ताकि इसे समृद्ध किया जा सके।
आदिवासी समाज की चुनौतियां
राष्ट्रपति ने देश के 75 “पीवीटी ट्राइबल” समूहों का उल्लेख करते हुए कहा कि कुछ आदिवासी अभी भी पेड़ों में निवास करते हैं। ऐसे समुदायों के उत्थान और संरक्षण के लिए सामूहिक प्रयासों की जरूरत है।
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