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जैन मुनि के साथ दुर्व्यवहार का मामला, पुलिस की जांच जारी
डेस्क: झारखंड के मुजफ्फरपुर जिले में एक घटनाक्रम सामने आया है, जिसमें दिगंबर जैन मुनि के साथ बदमाशों ने दुर्व्यवहार किया और उन्हें जान से मारने की धमकी दी। यह घटना सरैया थाना क्षेत्र के गोपीनाथपुर दोकड़ी में हुई, जहां तीन युवकों ने मुनि को गाली-गलौज करते हुए वस्त्र पहनाने का प्रयास किया। जब मुनि ने इसका विरोध किया, तो आरोपियों ने उन्हें जान से मारने की धमकी देते हुए वहां से भाग निकले। पुलिस अब आरोपियों की पहचान के लिए जांच कर रही है।
घटनास्थल की जानकारी
पुलिस के अनुसार, उपसर्गजयी श्रमण श्रीविशल्यसागर जी मुनिराज वैशाली में स्वर्ण कलश और स्वर्ण ध्वज स्थापना समारोह में भाग लेने आए थे। वे भगवान महावीर की जन्मस्थली बासोकुंड में ठहरे थे और सोमवार को सरैया के दोकड़ा स्थित कांटी टोला स्कूल में रात बिताने का निर्णय लिया था।
घटना का विवरण
मंगलवार की सुबह, जब दिगंबर जैन मुनि मड़वन की तरफ जा रहे थे, तभी गोपीनाथपुर दोकड़ा के पास दो युवकों ने उन्हें रोक लिया। वहां पर गाली-गलौज करने के बाद युवकों ने मुनि परंपरा का अपमान करते हुए उन्हें वस्त्र पहनाने की धमकी दी। जब मुनिराज ने इसका विरोध किया, तो आरोपियों ने उन्हें गोलियों से मारने की धमकी दी और मौके से फरार हो गए। इससे उनके साथ चल रहे अनुयायियों और स्थानीय लोगों में हड़कंप मच गया, जिसके बाद मुनिराज ने एनएच-722 के किनारे मौन ध्यान की मुद्रा में बैठ गए।
पुलिस कार्रवाई
इस घटना के संबंध में स्थानीय लोगों ने तुरंत पुलिस को सूचना दी। सरैया थाने की पुलिस टीम मामले की छानबीन के लिए मौके पर पहुंच गई। थानाध्यक्ष सुभाष मुखिया ने बताया कि वे आरोपियों की तलाश कर रहे हैं जो घटना के बाद से फरार हैं। इस मामले में अभी तक कोई लिखित शिकायत नहीं आई है।
जैन समुदाय की प्रतिक्रिया
इस घटना के बाद जैन समुदाय और स्थानीय लोगों में अफरातफरी और आक्रोश की स्थिति बनी हुई है। जैन समाज ने संतों की सुरक्षा को लेकर गंभीर चिंता जताई है। वहीं, मुनिराज ने अपनी निर्धारित यात्रा को आगे बढ़ाते हुए सीतामढ़ी की ओर प्रस्थान किया।
दिगंबर जैन मुनियों का विशेष महत्व
कपड़ा पहनने का प्रावधान: दिगंबर जैन मुनि वस्त्र पहनते नहीं हैं। उनका मानना है कि वस्त्र विकारों को छिपाने के लिए होते हैं। एक मुनि, जिसने अपने विकारों पर जीत प्राप्त कर ली है, उसे वस्त्रों की आवश्यकता नहीं होती। वस्त्रों की देखभाल और रख-रखाव के लिए धन की भी आवश्यकता होती है, जिसका त्याग वे करते हैं।
जैन धर्म के प्रवर्तक
जैन धर्म की परंपरा में 24 तीर्थंकर हैं, जिनमें पहले तीर्थंकर भगवान ऋषभदेव और अंतिम तीर्थंकर भगवान वर्धमान महावीर शामिल हैं। जैन धर्म के दो मुख्य समुदाय हैं- श्वेताम्बर और दिगंबर। दिगंबर समुदाय वस्त्र नहीं पहनता है, जो उनके अद्वितीय रहन-सहन का प्रतीक है।
इतिहास का संक्षिप्त विवरण
माना जाता है कि उत्तर भारत में 12 वर्षों तक अकाल पड़ा, जिसके चलते कई जैन मुनि दक्षिण भारत की ओर चले गए। वहां रहने वाले जैन साधुओं ने अपनी सुख-सुविधाएँ त्याग दीं और भिक्षाटन पर निर्भर हो गए। 12 वर्षों के बाद जब वे वापस लौटे, तो वहां रह रहे साधुओं ने उनके मार्गदर्शन को अस्वीकार किया, जिसके कारण जैन धर्म में दो समुदायों का निर्माण हुआ।
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