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बीजेपी में नाम सत्यापन की कमजोरी से उठी समस्याएं
रanchi: भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) ने गढ़वा जिले के रमकंडा और चिनियां मंडल में ऐसे नेताओं को मंडल प्रतिनिधि बना दिया है, जिनका पहले से ही निधन हो चुका था। रमकंडा मंडल में आठ महीने पहले दिवंगत पारस नाथ माली और चिनियां मंडल में दो महीने पहले दिवंगत रामसकल कोरवा के नाम पर नियुक्ति पत्र जारी किए गए।
हालात पर पार्टी नेतृत्व का हस्तक्षेप
इस मामले के उजागर होने पर वरिष्ठ नेताओं ने हस्तक्षेप कर आनन-फानन में सूची में संशोधन किया। दिवंगत नेताओं के नाम हटा कर रमकंडा से सोनू देवी और चिनियां से कपिल प्रसाद को नया मंडल प्रतिनिधि बनाया गया। हालाँकि, संशोधित सूची में पूर्व में नियुक्त संजय यादव, उमाशंकर यादव, पवन कुमार और अशोक सेठ के नाम भी हटा दिए गए, जिससे संगठन में नाखुशगी का माहौल है। वर्तमान समय में बीजेपी में संगठन पर्व के तहत चुनाव प्रक्रिया चल रही है, जिसमें विभिन्न विधानसभा क्षेत्रों के मंडल अध्यक्षों और मंडल प्रतिनिधियों का चुनाव हो रहा है।
स्थानीय नेताओं की प्रतिक्रिया
दिवंगत पारस नाथ माली के बेटे अवधेश माली ने कहा कि उन्हें आश्चर्य है कि उनके पिता को मंडल प्रतिनिधि के रूप में चुना गया है। उन्होंने समय से पहले सूचित किया था कि उनके पिता का निधन हो चुका है। दूसरी ओर, रामसकल कोरवा के बेटे राजू कोरवा ने कहा कि उनके पिता का भी निधन इस वर्ष अप्रैल में हुआ था, और उन्हें पता था कि पार्टी के कई नेता उनके अंतिम संस्कार में शामिल हुए थे। यह भी बताया कि वह इस बात से अचंभित हैं कि उनके पिता को मंडल प्रतिनिधि बना दिया गया।
बीजेपी के चुनाव प्रभारी का स्पष्टीकरण
बीजेपी के गढ़वा जिला चुनाव प्रभारी अमरदीप यादव ने कहा कि यह मामला टाइपिंग की गलती है। उनके अनुसार, जारी पत्र में त्रुटि हुई होगी। उन्होंने यह भी कहा कि योग्य लोगों का चयन पर उचित प्रक्रिया का पालन किया गया था। जब उनसे पूछा गया कि क्या केवल टेबल पर बैठक करके नामों का चयन किया गया, तो उन्होंने संगठनात्मक प्रक्रिया का हवाला दिया।
सदस्यता अभियान की चुनौतियां
झारखंड में वर्तमान सदस्यता अभियान उम्मीदों पर खरा नहीं उतर सका। कई क्षेत्रों में सक्रिय सदस्यों की संख्या कम होने के कारण वार्ड का गठन नहीं हो पाया। इससे मंडल गठन की प्रक्रिया में बाधा आई है। नियमों के अनुसार, जब तक आधे से अधिक वार्ड गठित नहीं होते, तब तक मंडल चुनाव नहीं हो सकता। कई मामलों में संगठन पर्व के दबाव में प्रक्रियात्मक संतुलन बिगड़ गया। इस लापरवाही का परिणाम हुआ कि दिवंगत नेताओं के नाम सूची में शामिल हो गए। जैसे ही मामला सामने आया, पार्टी ने तुरंत सुधारात्मक कदम उठाए।
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