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जानिए मंगरू की कहानी: एक मेहनती किसान की त्रासदी
झारखंड में हालात दिनों-दिन बदलते जा रहे हैं, लेकिन कुछ लोग अभी भी अपनी मेहनत और संघर्ष में लगे हुए हैं। इन बदलते हालातों में, एक ऐसे व्यक्ति की कहानी है जिसने अपनी जिंदगी के चार दशकों को खेतों में बिताया। मंगरू, जिनकी उम्र चालीस से पचास वर्ष के बीच है, आज भी अपनी पुरानी दिनचर्या में लगे हैं। हाल की लगातार बारिशों के कारण उनके मोहल्ले में ट्रांजिट मुश्किल हो गया है, लेकिन मंगरू ने अपनी कठिनाइयों को स्वीकार कर लिया है।
मोहल्ले की स्थिति
बारिश ने मोहल्ले की सड़कों को पानी से भर दिया है, जिससे लोग आवागमन में कठिनाई का सामना कर रहे हैं। मंगरू ने इन कठिनाइयों को नजरअंदाज करते हुए अपने खेतों में काम करना जारी रखा है। उन्होंने आज सुबह चार टोकरी नेनुआ और तीन टोकरी कुंदरू तोड़े और अब वह बैंगन तोड़ रहे हैं। पड़ोसी महिलाएं, वर्मा चाची और सिंह चाची, मंगरू से सब्जी मांगने आईं, लेकिन मंगरू ने उन्हें कोई सब्जी देने से मना कर दिया।
मंगरू का संघर्ष
मंगरू की मेहनत और अभाव ने उन्हें मानसिक और शारीरिक रूप से कमजोर बना दिया है। उनकी जीवन यात्रा की शुरुआत 1980 में हुई, जब राम प्रसाद शर्मा ने अपनी जमीन पर सब्जी उगाने का निर्णय लिया। मंगरू को सारडा के एक आदिवासी गांव से निमंत्रित किया गया, और तब से उन्होंने शर्मा जी के साथ काम करना शुरू किया। वर्षों से, मंगरू ने अपना जीवन अपने खेतों में बिताया है।
बदलते वक्त की मार
समय बीतने के साथ, लोगों की मानसिकता में बदलाव आ गया है। पैसे की महत्ता बढ़ गई है और राम प्रसाद शर्मा ने अपनी जमीन बिल्डर को बेचने का निर्णय लिया। एक दिन जब मंगरू ने देखा कि बिल्डर बुलडोज़र लेकर आया है, तो वह घबरा गया। उसने विरोध किया, लेकिन उसकी आवाज को अनसुना कर दिया गया।
किसान की चुप्पी
बुलडोज़र ने उसके पौधों को नष्ट कर दिया, और मंगरू के आंसू बह पड़े। उसे समझ में नहीं आ रहा था कि उसका जीवन इतना बदल गया है। मंगरू को शर्मा जी के घर ले जाया गया, लेकिन वहां भी उसका मन नहीं लगा। वह केवल अपने खोए हुए खेतों और पौधों को याद करता रहा।
चार वर्षों बाद की स्थिति
आज चार साल बाद, उस जमीन पर एक आलीशान फ्लैट-काम्प्लेक्स बना हुआ है, जिसमें लोग रह रहे हैं। मंगरू उसी फ्लैट-काम्प्लेक्स के पास एक कोने में बैठे पत्थर इकट्ठा करता है और बुदबुदाता है कि रात में वह इस बिल्डिंग को गिरा देगा। बच्चे उसे छेड़ते हैं, लेकिन मंगरू की मानसिक स्थिति किसी भी तरह की हंसी-मजाक से बहुत दूर है।
मंगरू की यह कहानी हमें दिखाई देती है कि किस प्रकार परिस्थितियाँ और व्यक्ति के फैसले एक किसान की जिंदगी को प्रभावित कर सकते हैं। आज, मंगरू का संघर्ष और उसकी मेहनत भले ही उसकी जिंदगी को जैसा पहले था, वैसा न बना सके, लेकिन उसकी कहानी हमें सोचने पर मजबूर करती है कि किसी भी बदलाव के पीछे क्या-क्या होता है।
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